साथियों हम एक बार फिर आप से रूबरू हो रहे हैं,
आप सबकों नवरात्रि, ईदुअल्जहा की बहुत सारी शुभकामनाएं। त्योहारों का मौसम है लिहाजा हमें बात तो करनी थी गुरूघर में होने वाले विकास और त्योहारों पर शानदार आयोजन की। लेकिन अफसोस हम आपकों को बताने जा रहे हैं कि किस तरह से हमारे तेरह साल के शानदार काम और सिख साहबान और सिखी के लिए किए कामों को रसातल में लेकर जाया जा रहा है। दिल्ली से लेकर पाकिस्तान के गुरूद्वारों में चल रहे हमारे कामों को आगे बढ़ाने के बजाए कैसे वर्तमान कमेटी बंगला साहब पार्किंग की आड़ में हमारे ऊपर निशाना साध रही है, जबकि हकीकत कुछ और ही कहानी बंया कर रही है कि कैसे कमेटी के प्रधान मनजीत सिंह जी के बादलों के संग मिलकर संगत की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ कर रहे हैं। दिल्ली के ऐतिहासिक गुरूघरों की सेवा जो संगत से उनको बक्शी है उसका मखौल उड़ा रहे हैं, उसकी आड़ में अपने स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं।
बंगला साहब कि शानदार पार्किंग जो आज सिख संगत के लिए सौगात है। हमारे लिए भी गुरू के प्रति हमारी श्रद्धा के साथ हमारे लिए आत्मिक सुकुन का सबब है, लेकिन जब चंद लोगो द्वारा साजिश के चलते ऐसी ऐतिहासिक धरोहर के अस्तित्व पर संकट खड़ा किया जाता है। संगत के मानयोग कामों को दरकिनार कर, वर्तमान कमेटी इसके बहाने हम पर निशाना साधती है, तो हमारे लिए ये आत्मिक पीड़ा का सबब होता है कि किसी की सोच, कितनी नकारात्म हो सकती है कि वो संगत को गलत बयानी कर हमारी छवि खराब कर रहे हैं, पार्किंग से जुड़े कागजों को उल्टी सीधी तरह से पेश कर गुरूघर के नाम पर राजनैतिक रोटिय़ां सेंक रहे हैं। यहॉ मैं आपकों बताना चाहूंगा कि हमारा मकसद हमेशा से सेवा और सिखी का प्रचार और विकास रहा है इसलिए हम सिलसिलेवार ढंग से पार्किंग और इससे जुड़े पूरे दस्तावेजों का ब्यौरा आपकी जानकारी में लेकर आना चाहते हैं।
जिस पार्किंग को लेकर आज इतना बवाल खड़ा किया जा रहा है, वास्तव में 1970 में सबसे पहले गुरूद्वारे के सामने की सड़क जयसिंह मार्ग हुआ करती थी, पर गुरुद्वारे में आने वाली संगतों में इजाफे के चलते पूरा इलाका वाहनों के बढ़ते बोझ से बेहाल रहता था इस ज़ाम को देखते हुए सबसे पहले इस सड़क पर पार्किंग की बात चली और गाड़ियां खड़ी होना शुरू हुई। लेकिन उस समय दिल्ली में कमेटी नहीं बोर्ड काम करता था। लिहाजा किसी सम्मानित सदस्य के पिता ने इसे किस तरह से लिया इसकी सत्यता का खुलासा होता है। इसके बाद दो दशक की चुप्पी के बाद सन 2000 में जब फिर से इस मसले पर चर्चा हुई तो तब के प्रेसिडेंट ने अवतार सिंह हित ने उपराज्य़पाल को लिखा था, जिसे हमारे साथी शायद आपके संज्ञान में लाना भूल गए या फिर उन्होंने शरारतन ऐसा किया...इसका जवाब तो वे ही दे सकते हैं, इसके अलावा साथियों हमें वर्तमान कमेटी के माननीय सदस्यों के अल्प अंग्रेजी ज्ञान को लेकर कोई टिप्पणी नहीं करनी, लेकिन जिस तरह से उन्होंने अपनी प्रेस वार्ता में शब्दों की व्याख्या की वो मेरे जैसे के लिए आश्चर्य का विषय है ही, संगत भी सहज अंदाजा लगाया सकती है कि उनका ज्ञान किस श्रेणी का है।
उन्होंने आरोप लगाया कि हमने गुरूघर के साथ धोखाधड़ी की गुरू की शान बढ़ाने वाली व्यवस्था के साथ गुस्ताखी की तो मैं बताना चाहूंगा कि जिस एनडीएमसी एक्ट 1994 की दुहाई बारबार जीके और सिरसा दे रहे हैं... उसी के मुताबिक एक्ट के सेक्शन 237 के तहत लुटिायन दिल्ली में किसी भी तरह के निर्माण के लिए चाहे वो भीतरी हो या बाहरी निर्माण के लिए एनडीएमसी से अनुमति जरूरी है, ऐसे में सवाल ये है कि क्या मनजीत सिंह जी के भूल गए या फिर संगत को भ्रम में डालने के लिए उन्होंने पेपर का मिस इंटरपटेशन किया क्या है हकीकत ये अपने आप में अहम सवाल है.
इसके अलावा सबसे बड़ा आरोप की हमने पार्किंग बेच दी तो, इन्हीं के दिेए पेपर कह रहे हैं कि पार्किंग initially (प्राथमिक तौर) 25 साल के लिए है.... इसमें कही नहीं लिखा की ये पार्किंग इसके बाद एनडीएमसी को चली जाएगी बल्कि ये कहा गया है कि पार्किंग चलाने का फैसला और इससे जुड़े मसले दोनों तरफ यानि कमेटी और एनडीएमसी की आपसी सहमति के तहत तय होंगे, कहा लिखा की, 25 साल बाद ये पार्किंग चली जाएगी। इसके अलावा गुरूघर. का इलाका एनडीएमसी के तहत आता है। और कानून के मुताबिक लैंड यूज का फैसला और इसका मालिकाना हक संबधी अख्तियार भी इसी आधार पर तय होंगे.....साफ है कि ये हिस्सा कभी गुरूघर का मल्कियत नहीं था। उल्टे परमजीत सरना और उनकी कमेटी ने इस ज़मीन पर निर्माण करके इसे गुरूघर की संपत्ति बना दिया। ऐसे नियम बनाए जिनके चलते एनडीएमसी का कोई दखल पार्किंग पर नहीं। ये साफतौर पर इन्हीं पेपर से पता लगाया जा सकता है....इतना ही नहीं अब 25 साल बाद केवल समझौता बढ़ेगा। ऐसे में हम वर्तमान कमेटी को चैलेंज कर रहे हैं कि वो इसे 50 साल का करके संगत को अपनी गुरुद्वारे के प्रति जिम्मेदारी का निर्वाह करे ।
अगर हम सिलसिलेवार ढंग से पूरी स्थिति का अवलोकन करे तो पाते है कि जीके और सिरसा साहब ने संगत को भ्रमित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.... इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि क्यों.वर्तमान कमेटी ने पत्रकारो को ये नहीं बताया कि किन परिस्थितियों में, 2002 तब के प्रधान अवतार सिंह हित ने काम शुरू कराया था... और काम बंद क्यों कराया ?
कमेटी के चुनाव 2013 में हुए थे तब से अब तक क्यों इस मसले को नहीं उठाया आज अचानक क्या इन्हें बीजेपी शासन में अपनी घटती साख को बचाने के लिए इस तरह से सुनियोजित षडयंत्र के तहत इस मसले को उठाया।
कमेटी ने पिछले एक साल में स्कूलों और गुरूद्वारों में विकास के क्या काम कराएं उनकी जवाबदेही बचने के लिए तो नहीं कहीं इस तरह से वो हम पर निशाना साध कर संगत को भ्रमित कर रहे हैं।